नगरी हो अयोध्या सी

नगरी हो अयोध्या सी

सरयू तट का होय किनारा,
चन्द्रप्रभा शुभ निर्मल सी।
पुष्प बिखेरें सौरभ हर्षित,
हो पुण्य धरा ये शीतल सी।।

रवि का हो आलोक चतुर्दिक,
सूर्यवंश का आदिदेव है।
प्रकृति मनोहर लगती हरदम,
छटा बिखेरे नई स्वमेव है।।

शीतल, सुखद बयारि चलै इत,
मज्जन-पान, पाप हरते।
सरयू निर्मल तीर अयोध्या,
में हर्षित प्राणी रहते।।

गली-गली सुरभित, पावन है,
जीवन-पुण्य धरा पर है।
करेंगे जो आज अयोध्या,
बड़भागी नारी-नर हैं।।

पीत मनोहर वसन सुखद है,
मुख, कर, पद अरविन्द सदृश।
श्याम-गौरमय जोड़ी श्रीहरि,
आजानबाहु प्रभु अमृत रस।।

जीवन बीते अगर अयोध्या,
और चहे क्या जगत खुशी।
आओ! चलें पुण्य सब लूटें,
नगरी होय अयोध्या सी।।

रचना-
जुगल किशोर त्रिपाठी (साहित्यकार)
बम्हौरी, मऊरानीपुर, झाँसी (उ०प्र०)