हिंदू को, हिंदुत्व में, जीना तो सिखा नहीं पाए हो
तुम उनके लिए धरा पर राम ले आए हो ।
शौक पाल लिया है, जिन्होंने पराधीनता में जीने का
तुम कहते हो, उनके लिए धरा पर राम आए हैं ।
वह गुलाम रहने की, आदत नहीं बदल पाए हैं
तुम उनके लिए सुग्रीव के मददगार, राम ले आए हो।
जो अपने वतन की, दृढ़ बुनियाद नहीं बन पाए हैं
उनकी फरियाद पर, तुम उनके लिए राम ले
आए हो ।
राम है, मंदिर है, जो राम सा आचरण भी न कर पाए
ऐसी छद्म प्रवृति के मायावी मानुष के लिए, तुम राम ले आए हो।
जंगलों के उत्पाती असुर, अब बस्तियों में आबाद हैं
तुम किसकी रक्षा के लिए, राम ले आए हो।
नारी मान-मर्यादा हरण में, हर गली-कूचे पर खड़े हैं सहस्त्रों रावण
तुम कहते हो दशानन से लड़ने वास्ते, राम ले आए हो।
तुम वानर सेना को, रावण से पार पाना नहीं सीखा पाए हो
तुम कहते हो, हम राम को जीता आए हैं ।
वह मर्यादा में रंगे सियार, कैसे राम को जीता सकते हैं
जो मर्यादा की ओट में, फौज रावण की खड़ी कर जाते हैं।
तुम राम संग लक्ष्मण को, चलना नहीं सिखा पाए हो
तुम देवालयों में, राम दरबार सजा आए हो।
तुम भरत जैसा, राज पाठ नहीं चला पाए हो
फिर कैसे तुम रामराज वापस ले आए हो ?
तुम राम सरीखे, कैसे मां के वचनों का मान कर आए हो
उसकी छत्रछाया को, वृद्धाश्रम में दान कर आए हो।
धोबी घाट पर धोबियों की छींटाकशी, सुनकर भी अनसुना कर आए हो
राम-सिया विछोह में, अकेले राम को चुन आए हो ।
राम सिया के गुणगान में, एक भी हनुमान नहीं पाए हो
कहते हो, धरा पर राम भक्तों की कतार ले आए हो।
राम-राम गुणगान में, तुम सिर्फ एक नाम राम लाए हो
मर्यादित होगा जब आचरण, समझो मन-मंदिर में राम लाए हो।
अर्चना कोचर