प्रभु सियाराम वन से अवध आगमन पर

सियाराम लखन घर आई रे,
अवध में बंटत बधाई रे।
जनम जनम के पुण्य उदित भए,
पूरण हुई सकलाई रे।
हर्ष निनाद चहुं दिश गुंजित,
जीव जगत हर्षाई रे।।

मंगल चौक पुरावो री सजनी,
जगर मगर दीपावली रजनी।
वंदनवार पताका लड़ियां,
झालर दीप जलें फुलझडियां।
मुक्ता कलश रंगोली घर घर,
अंगना दीप जलाई रे।।
सियाराम लखन घर आई रे।

ढ़पली ढ़ोल मृदंगा बाजें,
मंगल कीर्तन गायन गाजें।
ढ़ोलक झांझ मंजीरा घुंघरू,
वीणा सितार सारंगी साजें।
शंख बजें घंटा घड़ियालें,
अलगोजा शहनाई रे।।
सियाराम लखन घर आई रे।

घर देवालय पूजा अर्चन,
मानस पाठ चालीसा वंदन।
ऋषि मुनि साधूगण संन्यासी,
राम भक्ति तप जपें निरंजन।
नांच रही चहुं प्रजा उमंग में,
मगन हो लोग लुगाई रे।।
सियाराम लखन घर आई रे।

सोना चांदी रतन लुटाएं,
याचक की झौली भर जाएं।
सुरनर किन्नर देव बालाएं,
आसमान से सुमन झराएं।
बांटे अन धन हीरा मोती,
लक्ष्मी घर घर जाई रे।।
सियाराम लखन घर आई रे।

कंचन थाल कपूर सजाई,
अक्षत कुमकुम केसर मिलाई।
आरती मां कौशल्या उतारे,
राम सिया बांहों दुलराई।
मंगल गायन सोम ऋचाएं,
देव धरा पर आई रे।।
सियाराम लखन घर आई रे।

वाम अंग में सिया विराजे,
राम चरण में हनुमत राजे।
मातु केकई और सुमित्रा,
देख राम सिया हर्षित आजे।
भरत शत्रुघ्न करें वंदना,
लक्ष्मण चंवर ढुलाई रे।।
सियाराम लखन घर आई रे।

हर्ष निनाद चहुं दिश गुंजित,
जीव जगत हर्षाई रे।
सियाराम लखन घर आई रे।
अवध में बंटत बधाई रे।
जनम जनम के पुण्य उदित भए।
पूरण हुई सकलाई रे।।

कन्हैयालाल भ्रमर, जयपुर
मौलिक स्वरचित, सर्वाधिकार सुरक्षित।।