।।नयन अश्रु से पद मैं पखारूं ।।
छवि प्यारी तुम्हारी निहारू प्रभु।
नयन जल से पद मैं पखारू प्रभु।।
बिंदु से सिंधु तक तुम हो समाए हुए,
सारी सृष्टि को खुद से लुभाए हुए।
पग पग पर सभी को संभाले हुए,
फिर मैं कैसे तुमको बिसारू प्रभु।।
छवि प्यारी तुम्हारी निहारू प्रभु।
आप भक्तो के दिल में समाए हुए,
चांद सूरज को भी जगमगाए हुए।
प्राणों को तुममें यूं बसा कर प्रभु,
आरती मैं तुम्हारी उतारू प्रभु।।
.छवि प्यारी तुम्हारी निहारू प्रभु।
जिसने तुमको नकारा जब भी यहां,
सबक उसको तुमने सिखाया यहां।
दुष्ट जब जब भी मुझको सताए प्रभु,
मैं तब तब ही तुमको पुकारू प्रभु।
छवि प्यारी तुम्हारी निहारू प्रभु।
बाली हो चाहे रावण मारीच हो,
धाम सबको अपने पठाया प्रभु।
दुख कितने भले, खुद झेले प्रभु,
प्रण भक्तो को दुख से निवारू प्रभु।।
छवि प्यारी तुम्हारी निहारू प्रभु।।
डॉ. शिवदत्त शर्मा शिव
जयपुर राजस्थान।