र’’आ’ ‘म’ के शब्द तीन हैं सुन्दर

र’’आ’ ‘म’ के शब्द तीन हैं सुन्दर ,
ब्रह्मा विष्णु शिवरूप से बनकर ।
दशरथ कौशल्या अंक आए रघुराई,
अवध कुंवर से रघुकुल शोभा बढ़ आयी।”

खल दुष्ट जब अति बढ़ते जाते ,चोर लम्पट न रुक पाते ,
मातपिता देव तुल्य न रहते ,साधु भी न आदर पाते ।

अधर्म का जब वर्चस्व होता ,धर्म का ह्रास था होता ,
पाप की गठरी होती भारी ,धरती पर बढ़ती थी त्राही ।
सहमी सी वह रहती थी पृथ्वी क्रन्दन करती थी ,
राज्य रावण का अत्याचारी,दशानन से डरती थी भारी
ईश याचना करने को, माधव वन्दन करती थी ।
र’’आ’ ‘म’ के शब्द तीन हैं सुन्दर ,
ब्रह्मा विष्णु शिवरूप से बनकर ।


भक्त हृदय जो प्रीति होवे ,नारायण भावना वत्सल होवें ,
धरिनी को जब विपत में देखिं,
आकाशवाणी नभ से होती ।

“कष्टों को मैं हर लेने ,अवनि आँचल में सुख भरने ,
अवतरण सूर्यवंश में लूँगा,मर्यादा रूप मैं रहूँगा”।

अयोध्या में जब यज्ञ हुए भारी ,
विधियाँ सब पूरी मंत्रों से सारी ।
अग्निदेव पावन पायस ले आए ,
रानी प्रसाद अनुग्रहित कर पुत्र को पाए ।

“योग लग्न ग्रह वार तिथि का शुभ संयोजन,
शुक्लपक्ष चैत्र नवमी तिथि,श्री हरी आए मानव देह इसी प्रयोजन ।
दशरथ कौशल्या अंक आए रघुराई,
अवध कुंवर से रघुकुल शोभा बढ़ आयी।”

महल वीथिका और नगर में, प्रसन्न लहर सरयू में जैसे ,
नदियों में अमृत की धारा ,वन फूलों से पुष्पित लद लद सारा ।
कस्तूरी केसर अबीर गलिहारों में उड़ता,
मणियों में प्रतिबिम्बित रंगों में ऐसे ।
र’’आ’ ‘म’ के शब्द तीन हैं सुन्दर ,
ब्रह्मा विष्णु शिवरूप से बनकर ।

कानन में पशु पक्षी वंश प्रफुल्लित चहकें ,
चन्दन वन महके अलौकिक,सुवासित स्वर्ग हो जैसे ।
ख़ूब नगाड़े अवध देश में ,नर नारी उल्लास मनाते ,
धन धान्य आभूषण दान यथोचित दशरथ से पाते ।

साँवली सूरत,केश घुंघराले सघन मेघों से ,
उच्च भाल ,कमलनयन कमलिनी के सहचर से ।
शरीर सौष्ठव सुगठित ,अलंकृत छवि माणिक हो जैसे ,
नख की शोभा तड़ित दामिनी,चरण वज्र या जलज हों जैसे ।
तीक्ष्ण नासिका ,सुडौल कपोल,अधर मनोहर,कोटि कामदेव हों ऐसे ।

सौम्य वाणी सुख देने वाली, अनन्त गुणों के हैं स्वामी ,
धनुष बाण में रूप मनोहर, तुतलाते ,पैंजनी बजाते ,
पीत झिंगोले में सजते ,लीला करते न्यारी न्यारी
मातपिता आनंदित हों और निरखें साकेत के वासी ।

पिता बुलायें चंचल भागें , पीछे पीछे माता सारी ,
दाल भात में मुँह सनाकर पितृ गोद सबसे न्यारी ।
बाल चरित्र से सब कोई रीझें ,अंग प्रत्यंग मन्त्रमुग्ध हो जाते ,
माता का न मन पर वश अब ,रामवश सम्मोहित जननी सारी ।

“राम का नाम अति पवित्र है,वेद पुराण भी सारगर्भित हैं ,
बाललीला अति कल्याणकारी, तनिक छवि न अमंगलकारी ।”

र’’आ’ ‘म’ के शब्द तीन हैं सुन्दर ,
ब्रह्मा विष्णु शिवरूप से बनकर ।
सुनीता शारदा
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