राम राम नाम भज लिया ….
तुलसी कंठ बसी यह माला
राम भजन का स्वाद निराला
जिसकी जिव्हा ने पान कर लिया
राम राम नाम भज लिया…
१
राम चरित मानस का मनका
शील ,विनय, पारस का तिनका।
शबरी जूठे बेर खिलाए
रघुनंदन को स्नेह सुहाए।
देखे लखन सहज सकुचाए
मर्म प्रेम का समझ न पाए ।
जिसने ममता का सार पढ़ लिया
राम राम नाम भज लिया…
२
देख अहिल्या टेर लगाए
विनय करे और तुम्हें बुलाए।
मन जिसका पाषाण पड़ा हो
मौन अधर और प्रश्न बड़ा हो।
स्वाभिमान जब विष बन जाए
कौन हरी बिन, मान बचाए ।
जिसने पत्थर में प्राण भर दिया
राम राम नाम भज लिया…
३
कोई कहे मझधार में नैया
कोई कहे उस पार खिवैया।
मन खाए कितने हिचकोले
भेद भाव से मन को तोले।
केवट ने पतवार चला के
राम नाम की धार बहा के ।
जिसने भव सागर पार कर लिया
राम राम नाम भज लिया….
४
मर्यादा का नाम राम है
त्याग समर्पण ज्ञान राम है।
राम विलय हैं प्रेम पुंज का
सीता है आधार कुंज का।
एक अनोखी प्रीत निभा के
विरह सहेजी रीत निभा के ।
मन के प्रांगण में स्थान भर लिया
राम राम नाम भज लिया..
प्रतिभा त्रिपाठी
मुजफ्फरनगर