राम भरत मिलाप गीत

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राम भरत मिलाप गीत

ह्रदय है व्याकुल हैं नैन भीगे,
और चल दिए हैं पथरीला पथ है।
ना सिर मुकुट है ना पग खड़ाऊं,
प्रभु को मनाने चले भरत हैं।

समझ रहे हैं खुद को कलंकित,
राम के वन जाने का दोष लेकर।
इसमें नहीं कोई दोष मेरा।
कहते कैकई मां का नाम लेकर।
यदि मैं होता जाने ना देता,
मिली नहीं मुझको मुहलत है।

ना सिर मुकुट है ना पग खड़ाऊं,
प्रभु को मनाने चले भरत हैं।

मन में अनेकों हैं प्रश्न उभरे,
भैया से कैसे मैं मिलुंगा।
कैसे कहुंगा सारी व्यथाएं,
किस मुंह से हठ मैं करूंगा।
कैसे मिटेंगे संताप मेरे,
देखो कैसी मेरी किस्मत है।

ना सिर मुकुट है ना पग खड़ाऊं,
प्रभु को मनाने चले भरत हैं।

कैसा विधाता का है ये लेखा,
किस पाप की ये सजा मिली है।
जो मेरे सब कुछ वही नहीं तो,
जिंदगी मुझको क्यूं मिली है।
गिरते हैं और फिर ना संभलते,
गिरकर न उठती उनकी पलक है।

ना सिर मुकुट है ना पग खड़ाऊं,
प्रभु को मनाने चले भरत हैं।

चलते चलते चित्रकूट पहुंचे,
और सामना हुआ अब प्रभु से।
नयनों में जमी जो अश्रु धारा,
समेंटे हुए हैं जाने कब से।
पाया राम को जब सामने तो,
देखते ही उनको गई छलक है।

ना सिर मुकुट है ना पग खड़ाऊं,
प्रभु को मनाने चले भरत हैं।

खड़े खड़े बस ये ही सोचते हैं,
कि चरण रज लूं या गले लगालूं।
कैसे करूं सामना मात का मैं,
और लखन को क्या कह समझालूं।
जैसे ही चरणों में प्रभु के हुए समर्पित
ह्रदय लगाया प्रभु ने भाई भरत है।

ना सिर मुकुट है ना पग खड़ाऊं,
प्रभु को मनाने चले भरत हैं।

बोले भरत चलो भैया वापस,
मुझको ऐसी सजा क्यों दी है।
खता हुई है क्या मुझसे बोलो
मुझसे इतनी क्यूं बेरुखी है।
लगता है मुझको मेरे भगवन,
ये सब सिर्फ मेरा वहम है

ना सिर मुकुट है ना पग खड़ाऊं,
प्रभु को मनाने चले भरत हैं।

बोले प्रभु अब तुम जिद्द को छोड़ो,
मांओं के संग भाई लौट जाओ।
जिसके लिए तात ने प्राण त्यागे,
वही पिता का वचन निभाओ।
हे धर्म पालक वही करो तुम,
जो सूर्यवंशियों का धरम है।

ना सिर मुकुट है ना पग खड़ाऊं,
प्रभु को मनाने चले भरत हैं।

बहुत मनाया ना राम माने,
समझो भाई भरत सयाने।
जब निकला नहीं कोई निर्णय,
बोले अनुज की विनती मानें।
दे दें चरण पादुकाएं अपनी,
प्रभु मेरी अब यही अरज है।

ना सिर मुकुट है ना पग खड़ाऊं,
प्रभु को मनाने चले भरत हैं।

लेकर चरण पादुकाएं बोले,
अयोध्या आपकी अमानत रहेगी।
चौदह बरस का यदि पहर चढ़ा तो,
भैया भरत की जिंदगी ना रहेगी।
रख सिर पादुकाएं चलने लगे अब,
दोनों निभाते पिता का वचन हैं।

ना सिर मुकुट है ना पग खड़ाऊं,
प्रभु को मनाने चले भरत हैं।
Dr.Nutan Sharma ‘naval’