हे!राम तुम्हें इस कलियुग में

हे!राम तुम्हें इस कलियुग में

हे!राम तुम्हें इस कलियुग में,इक बार पुनःआना होगा ।
जो कल्पित तुमको मान रहे,अब उन्हें जताना ही होगा।

तुम तो कण-कण में रहते हो,संताप सभी के हरते हो।
तुमसा कोई रणधीर नहीं,जग में कोई बलवीर नहीं।
बलबीर तुम्हें इस मानव को,अब पाठ पढ़ाना ही होगा।

हे !राम तुम्हें इस कलियुग में,इक बार पुनःआना होगा।

मीठे शबरी के बेर नहीं,होती दिल से अब टेर नही।
केवट की टूटी नाव पड़ी,सरिता में केवल रेत उड़ी।
तो अर्ज यही प्रभुवर तुमसे,पथ पैदल ही जाना होगा।

हे!राम तुम्हें इस कलियुग में,इक बार पुनःआना होगा ।

भाई अब शत्रु सामान हुए,रुपए रिश्तो की जान हुए ।
नाते सबके सब अर्थ ढले,आपस के बंधन व्यर्थ छलें।
इस अर्थ काअर्थ बतलाने को,अब भरत बुलाना ही होगा।

हे!राम तुम्हें इस कलियुग में,एक बार पुनःआना होगा ।

त्रेता में रावण एक दिखा,पर वह चरित्र से नेक दिखा।
अब तो रावण हर और हुए,चहूं नारी चीर हरण हुए ।
ऐसे इन पापी जन पर तो,अब तीर चलाना ही होगा ।

है!राम तुम्हें इस कलियुग में,एक बार पुनःआना होगा ।

सड़कों पर लुटती अबलाएं,चीखें चिल्लाऐं मर जाए ।
अब कौन जटायु बचाता है,सीता का दाम घुट जाता है
तो ऐसी सब सीताओं को,अब तुम्हें बचाना ही होगा।

हे!राम तुम्हें इस कलियुग में,इक बार पुनःआना होगा ।

कवि अशोक गोयल
8218065876