घनाक्षरी छंद
सिया की विदाई
सकुचाते, शर्माते ,मंद-मंद मुस्काते ,
राम जी के गले सिया डारी जय -माल है ।
देव-गण करें स्तुति, फूल बरसाएं सभी,
लखि के जनक जी का ऊँचा हुआ भाल है । निरखत रामछवि ,मगन हुए हैं सभी ,
जनक पुरी में कैसा हुआ रे धमाल है ।
नयनों में जल भरे, जनक विदाई करें,
जानकी प्रभु के संग चली ससुराल है ।।
सिया का अयोध्या आगमन
तोरण लगाओ द्वार दीपक जलाओ सभी
फूलन की माला बना महल सजाओ जी
गाँव गली, घर बार जल छिडकाव करो
राज दरबार को भी खूब महकाओ जी
जनक सुता को लेने आये राजा राम सखी खुशियाँ मनाओ सभी, आरती सजाओ जी
राम जी का गुणगान रात दिन जपो नाम
रामजी का दास बनो अति सुख पाओ जी।
लता यादव