लीला राम की

राम मंदिर हेतु सितंबर माह की रचना।
“लीला राम की”

धरा धाम पर जब बढ़ा,अतिशय अत्याचार।
तब जन्में श्री राम जी,आये पालन हार।।

राजा अवध लुटा रहे,मोती भर-भर थाल।
अवधपुरी में धूम है,जन्मे दशरथ लाल।

रानी रूठी भूप से, मांगें दो वरदान।
पुत्र भरत को राज्य दो,वन को राम पयान।।

राजा व्याकुल रात से, रटें राम भगवान।
प्रात:जाते राम वन,दशरथ तजते प्रान।।

राम लखन सीता खड़े, माॅ सुरसरि के तीर।
केवट गंगा पार कर,कहते प्रभु रघुवीर।।

कमल नयन श्री राम ने,किए समर्पित मात।
दी रावण संहार की,तपो सिद्धि सौगात।।

पर्व दशहरा आ गया, लिए विजय संदेश।
लंका का रावण जला,मिटा बुराई क्लेश।।

समर भूमि में राम हैं,रावण है भयभीत।
सदा बुराई हारती,हुई राम की जीत।।

रावण के वध से मिला, विजया दशमी नाम।
अंत सत्य की जीत है,करो सदा शुभ काम।।

बीते दिन वनवास के, अवधपुरी में राम।
माता सारी मोद में,सुध-बुध भुला तमाम ।।

जगमग होती अयोध्या,दीप जलें हर ओर ।
बीते दिन वनवास के,दीवाली सब छोर।।

राम अयोध्या आ गये,सुर बरसाते फूल।
किन्नर गाते- नाचते, उड़ते रहें दुकूल।।

सबके दाता राम हैं,जग के पालनहार।
लगा ईश में ध्यान तू, वही करें उद्धार।।

प्रभु से बढ़कर कौन है, चरणों रखती माथ।
सबके दाता राम हैं,सिर पर उनका हाथ।।

स्वरचित मौलिक रचना
पुष्पा सोनी
ग्वालियर