केवल जिनके सुमिरन से ही,मिलता है मन को आराम।
क्या तेरे क्या मेरे वे हैं,सबके घट-घट वासी राम॥
राम-रमापति जपता जा तू,
क्यूँ घबराता है नादान।
वे सारे जग के स्वामी हैं,
वे रखते हैं सबका ध्यान॥
सबकुछ उन पर छोड़ो प्यारे,कर्म किये जाओ निष्काम।
क्या तेरे क्या मेरे वे हैं,सबके घट-घट वासी राम॥
और भला क्या माँगू तुमसे,
बस इतना वर दो भगवान।
राम नाम हो मुख पर मेरे,
जब भी निकले तन से प्राण॥
सब कहते हैं हरि से बढ़कर,भी है प्यारा हरि का नाम।
क्या तेरे क्या मेरे वे हैं,सबके घट-घट वासी राम॥
पुष्प,लताएं,चंदा,तारे,
सब करते जिनका गुणगान।
वे तेरे सब कष्ट हरेंगे,
ना आने देंगे व्यवधान॥
वे ही शुभ फल के दाता हैं,वे ही तो हैं सुख के धाम।
क्या तेरे क्या मेरे वे हैं,सब के घट-घट वासी राम॥
🙏🙏प्रदीप चौहान,शिकारगढ़ी,अलीगढ़🙏🙏
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