भक्त के वश में भगवान्

(((((( भक्त के वश में भगवान् ))))))

एक गरीब बालक था जो कि अनाथ था।एक दिन वो बालक एक संत के आश्रम मेँ आया और बोला के बाबा आप सबका ध्यान रखते हैं।मेरा इस दुनिया मेँ कोई नहीं है।
तो क्या मैँ यहाँ आपके आश्रम में रह सकता हूँ ?
बालक की बात सुनकर संत बोले बेटा तेरा नाम क्या है ?
उस बालक ने कहा -मेरा कोई नाम नहीं है।
तब संत ने उस बालक का नाम रामदास रखा और बोले कि अब तुम यहीं आश्रम में रहना।
रामदास वहीं रहने लगा और आश्रम के सारे काम भी करने लगा।
उन संत की आयु 80 वर्ष की हो चुकी थी। एक दिन वो अपने शिष्यों से बोले कि मुझे तीर्थ यात्रा पर जाना है।
तुम में से कौन कौन मेरे मेरे साथ चलेगा और कौन कौन आश्रम मेँ रुकेगा ?
संत की बात सुनकर सारे शिष्य बोले कि हम आपके साथ चलेंगे.! क्योँकि उनको पता था की यहाँ आश्रम मेँ रुकेंगे तो सारा काम करना पड़ेगा। इसलिये सभी बोले कि हम तो आपके साथ तीर्थ यात्रा पर चलेंगे।
अब संत सोच मेँ पड़ गये कि किसे साथ ले जाये और किसे नहीं क्योँकि आश्रम पर किसी का रुकना भी जरुरी था।
बालक रामदास संत के पास आया और बोला बाबा अगर आपको ठीक लगे तो मैं यहीँ आश्रम पर रुक जाता हूँ।
संत ने कहा ठीक है पर तुझे काम करना पड़ेगा… आश्रम की साफ सफाई में भले ही कमी रह जाये, पर ठाकुर जी की सेवा में कोई कमी मत रखना।
रामदास ने संत से कहा कि बाबा मुझे तो ठाकुर जी की सेवा करनी नहीं आती। आप बता दीजिए कि ठाकुर जी की सेवा कैसे करनी है ? फिर मैं कर दूँगा।
संत रामदास को अपने साथ मंदिर ले गये। उस मंदिर में राम दरबार की झाँकी थी।
श्रीराम जी, सीता जी, लक्ष्मणजी और हनुमान जी थे।
संत ने बालक रामदास को ठाकुर जी की सेवा कैसे करनी है सब सिखा दिया।
रामदास ने गुरु जी से कहा कि बाबा मेरा इनसे रिश्ता क्या होगा ये भी बता दो क्योँकि अगर रिशता पता चल जाये तो सेवा करने मेँ आनंद आयेगा।
उन संत ने बालक रामदास कहा की तू कहता था ना कि मेरा कोई नहीँ है। तो आज से ये रामजी और सीताजी तेरे माता-पिता हैं।
रामदास ने साथ में खड़े लक्ष्मण जी को देखकर कहा- अच्छा बाबा और ये जो पास मेँ खड़े हैं, वो कौन है ?
संत ने कहा ये तेरे चाचा जी हैं और हनुमान जी के लिये कहा की ये तेरे बड़े भैय्या हैं।
रामदास सब समझ गया और फिर उनकी सेवा करने लगा। संत शिष्योँ के साथ यात्रा पर चले गये।
आज सेवा का पहला दिन था रामदास ने सुबह उठकर स्नान किया और भिक्षा माँगकर लाया और फिर भोजन तैयार किया फिर भगवान को भोग लगाने के लिये मंदिर आया।
रामदास ने श्रीराम सीता लक्ष्मण और हनुमान जी आगे एक-एक थाली रख दी और बोला अब पहले आप खाओ फिर मैं भी खाऊँगा।
रामदास को लगा की सच मेँ भगवान बैठकर खायेंगे.पर बहुत देर हो गई। रोटी तो वैसी की वैसी थी।तब बालक रामदास ने सोचा नया नया रिश्ता बना है तो शरमा रहे होंगे।रामदास ने पर्दा लगा दिया। बाद में खोलकर देखा। तब भी खाना वैसे का वैसा पडा था।
अब तो रामदास रोने लगा कि मुझसे सेवा में कोई गलती हो गई इसलिये खाना नहीँ खा रहे हैं। ये नहीँ खायेंगे तो मैं भी नहीं खाऊँगा और मैँ भूख से मर जाऊँगा।इसलिये मैं तो अब पहाड़ से कूदकर ही मर जाऊँगा।
रामदास मरने के लिये निकल जाता है। तब भगवान रामजी हनुमान जी को कहते हैं- हनुमान जाओ। उस बालक को लेकर आओ और बालक से कहो कि हम खाना खाने के लिये तैयार हैं।
हनुमान जी जाते हैँ और रामदास कूदने ही वाला होता हैँ की हनुमान जी पीछे से पकड़ लेते हैँ और बोलते है- क्याँ कर रहे हो ?
रामदास कहता है- आप कौन ?
हनुमान जी कहते है- मैँ तेरा भैय्या हूँ। इतनी जल्दी भूल गये ?
रामदास कहता है- अब आये हो। इतनी देर से वहाँ बोल रहा था कि खाना खा लो तब आये नहीं ।अब क्यों आ गये ?
तब हनुमान जी बोले पिता श्री का आदेश है। अब हम सब साथ बैठकर खाना खाएंगे।
फिर रामजी, सीताजी, लक्ष्मणजी, हनुमान जी साक्षात बैठकर भोजन करते हैं।
इसी तरह रामदास रोज उनकी सेवा करता और भोजन करता।
सेवा करते 15 दिन हो गये। एक दिन रामदास ने सोचा कि कोई भी माँ बाप हो। वो घर में काम तो करते ही हैं।पर मेरे माँ बाप तो कोई काम नहीँ करते। सारे दिन खाते रहते हैं।मैं ऐसा नहीं चलने दूँगा।
रामदास मंदिर जाता हैँ ओर कहता है- पिता जी! कुछ बात करनी है आपसे।
रामजी कहते है- बोल बेटा, क्या बात है ?
रामदास कहता है कि अब से मैं अकेले काम नहीं करुंगा। आप सबको भी काम करना पड़ेगा।
आप तो बस सारा दिन खाते रहते हो और मैं काम करता रहता हूँ। अब से ऐसा नहीँ होगा।
राम जी कहते हैँ- तो फिर बताओ बेटा हमेँ क्या काम करना है ?
रामदास ने कहा कि माता जी (सीताजी) अब से रसोई आपके हवाले. और चाचा जी (लक्ष्मणजी) आप सब्जी तोड़कर लाओँगे.
और भैय्या जी (हनुमान जी) आप लकड़ियाँ लायेँगे. और पिता जी (रामजी) आप पत्तल बनाओँगे।
सबने कहा ठीक हैँ।
अब सभी साथ मिलकर काम करते हुए एक परिवार की तरह सब साथ रहने लगे।
एक दिन वो संत तीर्थ यात्रा से लौटे तो सीधा मंदिर मेँ गये और देखा कि मंदिर से प्रतिमाऐँ गायब हैँ.
संत ने सोचा कहीं रामदास ने प्रतिमा बेच तो नहीं दीं ? संत ने रामदास को बुलाया और पूछा- भगवान कहाँ गये ?
रामदास भी अकड़कर बोला कि मुझे क्या पता? रसोई में कहीं काम कर रहे होंगे।
संत बोले- ये क्या बोल रहा है ?
रामदास ने कहा- बाबा! मैं सच बोल रहा हूँ। जबसे आप गये हैं ,ये चारों काम मेँ लगे हुए हैं।
वो संत भागकर रसोई मेँ गये और सिर्फ एक झलक देखी कि सीता जी भोजन बना रही हैं। रामजी पत्तल बना रहे हैं और फिर वो गायब हो गये और मंदिर मेँ विराजमान हो गये।
संत रामदास के पास गये और बोले आज तुमने मुझे मेरे ठाकुर का दर्शन कराया। तू धन्य है।
और संत ने रो रो कर रामदास के पैर पकड़ लिये…!

🙏 जय जय श्री राम🙏