भक्ति रस
मन दर्पण में राम बसाकर
भाव मग्न हो जाऊँ मैं,
राम नाम की वीणा बनाकर
ख़ुद झंकृत हो जाऊँ मैं।
रोम रोम श्री राम समाये
जीवन दरिया बहता जाये
हनुमंत रस बरस उठे अब
हम सबके मन को हर्षाये
कण कण में तुमको ढूँढू
प्रेम मोती बरसाऊँ मैं,
मन दर्पण में राम बसाकर
भाव मग्न हो जाऊँ मैं…..
राम नाम का इत्र लगाकर
जीवन अपना महकायें
श्री राम के चरण लगे तो
शिला भी नार बन जाये
रोम रोम में भक्ति समाकर
ख़ुद में सिमटती जाऊँ मैं,
मन दर्पण में राम बसाकर
भाव मग्न हो जाऊँ मैं…..
वसुधा पर यौवन बिखरा
व्योम बने कस्तूरी मृग
संजीवनी हनुमंत ले आये
जलधारा से भीगे दृग
भक्ति भाव में घन गरजे तो
प्रेम से झोली भर लाऊँ मैं,
मन दर्पण में राम बसाकर
भाव मग्न हो जाऊँ मैं…..
बी सोनी
इन्वेंटर, पेटेंट