(गीत)

(गीत)
जिसने राम कहा ना जीवन,है उसका किस काम का।
आज बजा है जग में डंका,मेरे प्रभु श्री राम का।।

मिथिला में जाकर रघुवर ने,शिवजी का था धनु तोड़ा।
विपुल वीर रह गए देखते,सिय से जब नाता जोड़ा।।
जनकराज का शोक मिटा,सब सुखी हुए हैं नरनारी।
सिया राम की सुंदर जोड़ी,जब निज नयनन निहारी।।
हुए प्रसन्न भक्त जन सारे,दर्शन कर सुखधाम का।
आज बजा है जग में डंका,मेरे प्रभु श्री राम का।।

कैकई ने जब अपने सुत को,राज्य अवधपुर का माँगा।
चौदह वर्ष बिताए वन में,महलों का था सुख त्यागा।।
पंचवटी पर खरदूषण को,सह दल बल संहारा था।
कुंभकर्ण मकराक्ष दशानन,को लंका में मारा था।।
देवराज ब्रह्मा शंकर जी,गुण गाएँ बलधाम का।
आज बजा है जग में डंका,मेरे प्रभु श्री राम का।।

सीय लखन सह राघवेन्द्र,जब लौट अवधपुर को आए।
राजतिलक कीन्हा वशिष्ठ ने,सिंहासन पर बैठाए।।
हर्षित हुई त्रिलोकी सारी,हर्षित धरती अम्बर थे।
हर्षित हुए सभी जड़ चेतन,राजा राम सियावर थे।।
‘सागर’ चरण वंदना करता,अज अनादि छविधाम का।
आज बजा है जग में डंका,मेरे प्रभु श्री राम का।।

(सुरेन्द्र शर्मा सागर)
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