भारत-चेतन के प्राणतत्व,
दशरथ-सुत कौशल्यानंदन ।
हे राघव! रामभद्र, शाश्वत,
कौशल-किशोर श्रीराम नमन् ।।
जित क्रोध,लोभ,हे अखिलेश्वर!
जग-संस्कृति के हे संवाहक !
तुम हो तो इस भारत-भू का
जग सदियों से है गुण-ग्राहक ।।
दसकंधर सँग खर-दूषणारि
जग-क्रंदन का करते भंजन ।
हे राघव ! रामभद्र, शाश्वत….।।
तुम त्रिगुण, त्रयी, वेदात्म तुम्हीं
उपनिषद, पुराणों की वाणी ।
तुम हरबोलों के प्रात-भजन
तुमसे ही कविता कल्याणी ।।
तुम हर जन में, प्रभु हर मन में
हो कण-कण में राजीव नयन ।
हे राघव ! रामभद्र,शाश्वत….।।
तुमसे ही सत्य सनातन है
हे दैन्य विभीषण परित्राता !
तुमसे ही सीखा जग ने गुरु,
पितु-मातु, बंधु-बांधव-नाता ।।
तुम मित्र, सखा की परिभाषा
अभिशप्त अहल्या के तारन ।
हे राघव ! रामभद्र,शाश्वत….।।
हे दयासिंधु ! गंभीर, सौम्य
तुम पुरुषोत्तम कहलाते हो ।
कर अग्निबाण संधान कभी
पल में जल-सिंधु सुखाते हो ।।
फूलों-सा कोमल मन करता
ऋषि परशुराम का दर्पदलन ।
हे राघव ! रामभद्र, शाश्वत….।।
हे पुण्योदक, साकेतधाम !
घर-घर की दीपक-बाती तुम ।
जिससे अनुप्राणित सत्य, धर्म
भारत की पावन थाती तुम ।।
घर-घर में रामचरितमानस
घर-घर आयोध्या का दर्शन ।
हे राघव ! रामभद्र, शाश्वत….।।
राजकुमार महोबिया, उमरिया,म.प्र.
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