गीत

हे राम सकल गुणधाम सुनो ।।
तुम्हें बारम्बार प्रणाम सुनो ।।
मेरी कोशिश है तुम तक पहुंचे ।
जन जन का के पैगाम सुनो ।।

क्यूँ भूल गए उस भूमि को जिस पर अवतरित हुए थे तुम ।
सत के पथ पर चल कर ही तो सच है सद्चरित हुए थे तुम ।
रघुकुल का मान बचाने को महलों के सब वैभव त्यागे ।
अपना पतिधर्म निभाने को इक मृग के पीछे भी भागे ।
पर इस युग का हर मानव तो दौलत शौहरत का प्यासा है ।
वो रखता है पाषाण हृदय वैसी ही उसकी भाषा है ।
झूठे हैं सारे ठाट बाट ।।
हर तरफ मची है मारकाट ।।
हर रिश्ता लगता है झूठा ।।
विश्वास सभी का है टूटा ।
अपनों ने अपनो को मारा ।
अपनों ने अपनो को लूटा ।।
माँ बाप के धन को हथिया के बेटा छलकाये जाम सुनो ।।
हे राम सकल गुणधाम सुनो ……..

हे राम धरा पर आ जाओ और धनुष बाण कर लो धारण ।।
हर नगरी है लंका जैसी और रहते हैं सौ सौ रावण ।।
लेकिन इस युग की सीता को सरेआम उठाया जाता है ।।
दुःख ये है कि बेदर्दी से उसे नौचा खाया जाता है ।।
हर तरफ यही डर फैला है जाने कब अस्मत लुट जाये ।
कर दो लीला प्रभु कुछ ऐसी दुष्टों से पीछा छुट जाये ।।
अब छाया है अंधकार घना ।।
ये प्रेम भी एक व्यापार बना ।।
नारी की लाज है खतरे में ।
सच की आवाज है खतरे में ।
कल आयेगा तो क्या होगा ।
जब मेरा आज है ख़तरे में ।
कहीं हो ना जाये दुनिया का इससे भी बुरा अंजाम सुनो ।।
हे राम सकल गुणधाम सुनो  ।।

रचियता
बृज माहिर
+91 98115 45977