जब भी धरती पर पाप और पाखंड अधिक हो जाता है
इंशानों में ब्यभिचार रूप धारण करके छुप जाता है
मानवता खोने लगती जब दुष्कर्मों के साये में
जब नीति और निर्धारण का हर दीप स्वतः बुझ जाता है
तब धरती पाप मुक्त करने श्रीराम अवध में आते हैं।।
मानवता की रक्षा करने सुखधाम अवध में आते हैं।।
जब रिषियों के तप विध्वंसक छल और प्रपंच चलाते हैं
माया से रूप बदलकर के तांडव सब ओर मचाते हैं
जब नारी की मर्यादा का हर बार उल्लंघन होता है
जब अमृत पाने की खातिर सागर का मंथन होता है
जब कौशिक मुनि की कठिन तपस्या में बाधाये आती हैं
राक्षसी प्रवृत्ति पनप करके संतों को भय दिखलाती हैं
तब धर्म-कर्म के रक्षक बन निष्काम अवध में आते हैं
मानवता,,,,,,,
रावण के अत्याचारों से यह धरती कंपित हो जाती
जब कर्म अकर्म समझनें में यह सृष्टि
अचंभित हो जाती
राजस तामस अवलंबन से जब भय ब्याकुलता बढ़ जाती
जब दुष्टों के वर्चस्वों से मानवता हर दिन घबराती
जब सत्य पराजित होता है मिथ्या महिमा मंडित होती
आचार संहिता की सारी धाराएं ही दंडित होती
तब धनुष बाण लेकर सब पूरण काम अवध में आते हैं
मानवता,,,,,,,
जब रावण का अभिमान गर्व से स्वयं विधाता बन जाता
जब कुंभकर्ण का उदर सभी जीवों को भक्षण कर जाता
नर और पशु पक्षी देवों में त्राहि-त्राहि हो जाती है
जब सेवरी माता भक्ति भाव से प्रभु को रोज बुलाती है
आंडबर का चेहरा चरित्र जब सबकी समझ न आता है
कपटी छल के आयामों में जब धर्म सदा दुख पाता है
तब सत्य धर्म को समझाने श्रीराम अवध में आते है
मानवता,,,,,,
आलोक रंजन त्रिपाठी