राम नाम ही बोलिये, हित सबका ही होय
राम नाम है वो सुधा, जिसका तोड़ न कोय
लोग जहाँ प्रसन्न नहीं, वहाँ न जाओ आप
जिया रमाओ राम में, मिटें सभी सन्ताप
देह जाय तक थाम ले, राम नाम की डोर
फैले तीनों लोक तक, इस डोरी के छोर
तन की आभा वस्त्र है, मन की शोभा बात
उत्तम बातें कीजिये, याद रहे दिनरात
त्याग दिए जिसने व्यसन, वो नर बने महान
राज सुखों को त्याग कर, बढ़ी राम की शान
सुःख-दुःख में जो मित्र के, आते हर पल काम
प्रभु उनके संकट हरे, प्रसन्न उनसे राम
गुण-अवगुण के साथ यदि, करते सोच-विचार
अच्छे मानव आप हैं, उत्तम यह व्यवहार
अपशब्दों से होत है, चरित्र की पहचान
गुस्से में अपशब्द का, रखिए हर पल ध्यान
छल है, माया रूप है, सब मिथ्या संसार
राम नाम से नेह कर, बाक़ी सब बेकार
राम भक्ति वो फूल है, जिसका फल है ज्ञान
वर दे उनको शारदे, वो सब हैं विद्वान
जिसने पाया राम को, उसे न जग से काम
जिसको लागी राम धुन, वो पाए सुखधाम
भक्तों में हैं कवि अमर, स्वामी तुलसीदास
‘रामचरित मानस’ रचा, राम भक्त ने ख़ास
कवि: महावीर उत्तरांचली
8178871097