राम स्तवन

भक्तवत्सल राम राघव, दुश्मनों का नाश कर दो।
हो धरा खुशहाल अब तो,शांति अरु सद्भाव भर दो॥
ताड़का का वध करो अब,शांति का सोपान धर दो।
कष्टकारी शक्तियों का, मूल से अब नाश कर दो॥

अब धरा पर पाप का नित,बोझ बढ़ता जा रहा है।
झूठ का है बोलबाला, सत्य मुँह की खा रहा है॥
शांति गायब है घरों से, आपसी तकरार नित है।
कर्म कुत्सित हो गए हैं, कर रहे सब ही अहित है॥

रावणों का नाश कर दो,अब सिया उद्धार धर दो।
राक्षसी सब शक्तियों का, सर्वसत्यानाश कर दो॥
प्रेम की गंगा बहा दो, स्वर्ग का साम्राज्य धर दो।
हे धनुषधारी सियापति,सर्वमंगल भाव भर दो॥

डॉ॰ अर्जुन गुप्ता ‘गुंजन’
प्रयागराज, उत्तर प्रदेश