अयोध्या

अवधपुरी मनभावन अतिशय , पावन सरयु धार ।
कण-कण सिंचित भक्ति सुधा से, महिमा अमित अपार ।।
सूर्यवंश का शौर्य समाहित
वेद ऋचाओं से आवाहित।
प्राण जाय पर वचन नं जाये,
बूंद बूंद मरजाद प्रवाहित
सदाजयी यह सदाशयी भू , रघुकुल यश विस्तार।
कण-कण सिंचित भक्ति सुधा से, महिमा अमित अपार।।
लक्ष्य सदा जिनका परमारथ
इक्ष्वाकु ,रघु ,सगर ,भगीरथ
कीर्ति पताका उच्च गगन में,
अज ,दिलीप से राजा दशरथ
जन जन के रक्षक प्रतिपालक,जन मन के सुख सार।
कण-कण सिंचित भक्ति सुधा से, महिमा अमित अपार।।
चार भाइयों की किलकारी
बलि बलि जाये हर महतारी
धन्य धन्य धरती मैया भी,
शोभित खुशियों की फुलवारी
सरयु का तट साक्षी सबका , नमन नमन हरं बार।
कण-कण सिंचित भक्ति सुधा से, महिमा अमित अपार।।

चंद्रिका राम