सीता

चुप चाप बैठी थी मैं कोसी के किनारे
सीता मैया के द्वारे
मन सोचने लगा
कुछ कहानियाँ सी बुनने लगा,
नन्ही नन्ही सी कलियों को चुनने लगा,
डाल को थोड़ा हटाया तो कुछ अद्भुत सा
मुझे नज़र आया ,
पहुँच गई जैसे अतीत में
सीता राम के मधुर प्रीत में !!

सीता खेलती होगी सखियों संग
पानी के किनारे ,
सीता कोसी में लगाती होगी डुबकी,
जोड़ती होगी हाथ,
करती होंगी प्रार्थना कर जोड़कर-
नारायण कब होंगे मेरे साथ,
दिन से रात भई और रात से दिन
क्यों हैं अभी भी हम भिन्न भिन्न!!

सुखाती सखियाँ उनकी लाल सारी (साड़ी),
हवा में उड़ती , लेती हिंडोले
एक ओर उड़े तो कहे वो सारी (साड़ी)-
मैं तो हूँ सीता की सबसे प्यारी
दूसरी ओर उड़े तो कहे वोह सारी-
मुझे ओढ़ सीता इठलाती
पहनकर मुझे वह जनक की जानकी कहलाती!!

सीता गुन-गुनाती , चिड़ियों के संग
पीहू के संग , कोयल के संग
कुछ गीत वो गाती,
ऐसी स्वर रागिनी ना सुनी किसी ने,
ऐसा मन-मोहक राग वो सुनाती,
सब दिशाओं से आवाज़ ये आती
जय जय हो तेरी जानकी।

राम जी भी कोसी नदी के पास ही थे,
बात करते, चलते जाते अपने गुरु के संग
सुन कर गीत जानकी का दूर से
(राम जी) कहते ……
बहुत मधुर ,बहुत मधुर , बहुत मधुर।
तेरा स्वर में है गायत्री वंदन
जिसके स्वर में हो ऐसे क्रंदन
उस देवी को मेरा अभिनंदन!!

सीता लेकर कलम
पात पे लिखती अक्षर,
सोचती और लिखती –
कहानियाँ और लेख,
लिखती खूब कविताएँ-
प्रकृति पर , सौंदर्य पर
शिव पर , नारायण पर
ब्रह्म पर ,श्रम पर
स्त्री पर , पुरुष पर
ज्ञान पर ,ध्यान पर
माँ पर , पिता पर
दोहों पर, छंद पर
आनंद पर , परमानंद पर !!

हे सिया आपको नमन,
हे सिया के पद चिन्हों से अलंकृत भूमि
आपको भी शत शत नमन।
हर ओर है शांति
हर ओर है प्रकृति का सौंदर्य
अभी भी नारियों में सीता के मन जैसी
दिव्य निर्मलता,
अभी भी नर में है शौर्य और सरलता,
बच्चो के मन में अभी भी हैं नन्ही कलियों सी कोमलता
मन बहुत प्रसन्न हुआ देख कर ये निश्छलता !!

स्वरचित
~अरुणा कौल नायर