कर्मों का फल
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उम्मीद नहीं थी राजा दशरथ को रानी कैकेई ऐसा वर भी मांगेगी।
अपने ही लाडले राम को वह वन में भेजना चाहेंगी।
होनहार यह कैसी राजा दशरथ का मंन डोला।
अरे रानी फिर से तो सोचो भला यह तुमने क्या बोला ?
राजा गिडगिडाते रहे पर रानी तो चुप खड़ी थी।
अपनी एक ही बात पर वह तो अड़ी थी।
होनहार ने देखो था कैसा जाल बिछाया।
भरत शत्रुघ्न भी पास में ना थे
उनको भी था ननिहाल भिजवाया।
साम दाम दंड भेद अस्त्र सब राजा ने प्रयोग करें।
भरत को राज्य में दे दूंगा मैं क्यों राम से तु वियोग करें।
होनहार को क्या मतलब
राजा राम बने या कि भरत।
काल तो रावण का आया था।
जिसने श्री राम को वन में बुलाया था।
अब इस काल के कुचक्र ने ही
रानी को भरमाया था।
काल अपना काम कर गया।
रानी कैकई को बदनाम कर गया।
पुत्र वियोग में मरना राजा दशरथ की भी तो नियति थी।
रानी तो व्यर्थ ही कुचक्र में फंस गई उसकी भी क्या गलती थी ?
देख कर तो ऐसा ही लगता है ना, और कथा यूं ही परिपूर्ण हुई।
कभी सोचा इसमें अनजानी और अनचाही गलती रानी से कहां पर हुई ?
लोभ मोह क्रोध,? मद और अहंकार
यह सब है नरक के पंथ।
इन पर विजय अगर पा लोगे तुम तो हो जाओगे संत।
होनहार को पता था कि पुत्र भरत को कोई भी विकार छू भी न सकेगा।
काल कितना भी भरमाए, भद्र प्रेम से वह ना डिगेगा।
आसान है काबू करना रानी कैकई को क्योंकि उसका मन तो मोह ग्रस्त ही रहेगा।
अपने अहंकार के मद में चूर होकर ही राजा दशरथ ने था श्रवण कुमार पर शब्दभेदी बाण चलाया।
किस मद में वह भूल गया था वहां की प्रजा की रक्षा का बीड़ा भी तो उसने ही है उठाया।
समय बीत गया कर्म अपना बीज बो गया।
समझ तभी आता है जब कर्मों का पेड़ भी बड़ा हो गया।
अब पेड़ लगाया है तो फल भी तो तुम्हारे ही होंगे।
आज नहीं तो कल अपनी करनी के फल तुम्हारे सामने आने ही होंगे।
काल भी उनको छू सकता नहीं।
जिनके होंगे कर्म सही।
राम राज्य में मंथरा हो सकती है, तो देखो रावण राज में भी हैं विभीषण और मंदोदरी भी वहीं।
मधु वशिष्ठ, फरीदाबाद, हरियाणा