पुरुषोत्तम श्रीराम !
-डॉ. घमंडीलाल अग्रवाल
जब तक यह ब्रह्मांड रहेगा,जब तक सृष्टि तमाम !
व्याप्त रहेंगे कण-कण में नित,पुरुषोत्तम श्रीराम !!
प्राण जाय पर वचन न जाहीं,रघुकुल रीति निभाई,
मर्यादा की राह चले,आज्ञा न कभी ठुकराई,
संयम और त्याग का भू पर,बन पर्याय गए वो,
आए जीवन में क़ायम करने आदर्श नए वो,
ख़ूब बनाए हँस-हँसकर,सारे भक्तों के काम !
व्याप्त रहेंगे कण-कण में नित,पुरुषोत्तम श्रीराम!!
सेज सुखों की पल में त्यागी,वन की ओर चले थे,
नाम पिता का ऊँचा रक्खा,मन से बड़े भले थे,
लक्ष्मण से भी ज़्यादा चाहा,भाई-से हनुमत को,
बना नम्रता ही आभूषण,भगा दिया आफ़त को,
जोड़ा पूर्व नाम के अपने,जनकसुता का नाम !
व्याप्त रहेंगे कण-कण में नित,पुरुषोत्तम श्रीराम!!
लोकलाज से हटे न पीछे,सीता को भी त्यागा,
ऋषि-मुनियों का मान बढ़ाया,प्रेम ह्रदय में जागा,
गहराया अन्याय जहाँ पर,शस्त्र वहाँ पर ताने,
स्वार्थ-भाव की पढ़ी न पोथी,जाने या अनजाने,
फिर चाहे जैसा भी हो,कर्तव्यों का परिणाम !
व्याप्त रहेंगे कण-कण में नित,पुरुषोत्तम श्रीराम !!
ऐसा उदाहरण दुनिया में,कहाँ मिलेगा दूजा,
इसीलिए नर-नारी करते,श्रीराम की पूजा,
माता,पिता,बंधु,सेवक-जन,राम सभी को प्यारे,
और संगिनी सीता के ऊपर,तन-मन-धन वारे,
संकट में जो नाम जपेगा,पाएगा आराम!
व्याप्त रहेंगे कण-कण मे नित,पुरुषोत्तम श्रीराम!!
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