वनवासी राम हुए

वनवासी राम हुए
————————चक्रधर शुक्ल

संतों,भक्तों के खातिर ही
वनवासी राम हुए ।

अजगव तोड़ा,सीता ब्याही
मिथिला में जयकारा ,
मृगमारीच और खरदूषण
दुष्टों को संघारा ।

रावण-हनन किया लंका में
गद् दी दी भाई को ,
हनुमान वाटिका से लाए
हैं सीता माई को ।

पिता वचन को मान गए वन
लखन सिया-संग राम ,
जन-जन के प्राणों के प्यारे
जगत के पोषक राम ।

बाबा तुलसी ने सत्य कहा
अविनाशी राम हुए ,
संतों,भक्तों के खातिर ही
वनवासी राम हुए ।

जंगल में भी रहे नियम से
सबके हित को साधा ,
कोल-भिल्ल को मित्र बनाया
दूर किया सब बाधा ।

मातु अहिल्या को पद-रज से
नाथ आपने तारा ,
भजन करें दिन रात संत जन
लगता जय -जयकारा ।

कनक भवन से लंका तक की
गाथाएँ हम गाते ,
पद् चिन्हों पर जो चलते हैं
जीवन का सुखपाते ।

जूठे बेर खिलाती शबरी
सन्यासी राम हुए ।
संतों,भक्तों के खातिर ही
वनवासी राम हुए ।

मौलिक

चक्रधर शुक्ल
एल आई जी-1
सिंगल स्टोरी
बर्रा-6
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