धरती-अम्बर-कुदरत झूमे, रामलला जो आ रहे।

धरती-अम्बर-कुदरत झूमे, रामलला जो आ रहे।
जन-जन में जागृति रा’म की, गीत राम के गा रहे।
त्रेता युग-सा भान हुआ है, भारत माँ फिर जी उठी….
पग-पग झण्डा भगवा का सब, भगवा में रँग जा रहे।

माघ मास तुम धन्य हुए हो, कर जोड़कर करूँ प्रणाम
आओ स्वागत को आतुर हूँ, छोड़ बैठी हूँ निज काम
इंतजार में सदियां बीतीं, भरे नयन अब छलक रहे
अवधपुरी में प्राण प्रतिष्ठित, जयकारे लगे जय श्री राम।

आँखों में छवि बसी रामलला की
सुंदर सुशोभित मुस्कान लला की
बालरूप दिखे है अद्भुत स्वरूप…
पावन जपे है मुख नाम लला की।

अयोध्या दृश्य राम हैं
जन में व्याप्त राम हैं
राम में समाहित जगत
आधार सृष्टि राम हैं।
🖍मधु गुप्ता 🖍