मैंने तुझको सुमिरा रामअलका सिन्हा

 

जब भी कोई विपदा आई, मैंने तुझको सुमिरा राम।


जो तुम मेरी जगह पे होते, कैसे राघव लोहा लेते
कैसे मर्यादा को रचते, कैसे करते पूरे काम।


वन-वन भटके राजभवन से, राज प्रतिज्ञा की खातिर
छोड़ राजसी ठाठ-बाट सब, बने नागरिक आम।


शबरी के जूठे बेरों में, थी मिठास तूने बतलाया
है कितना अनमोल भाव यह और कैसा बेदाम।


तुम मर्यादा पुरुषोत्त्म थे, आदर्शों पर सदा चले
ऐसी थी यश-कीर्ति तुम्हारी, कभी न ढलती जिसकी शाम।


सजी हुई है आज अयोध्या, दीप जलाता सारा देश
जगमग करती नगरी सारी, सबके मन में तेरा धाम।


जब भी कोई संकट आया, तुमको अपने भीतर पाया
राह दिखाई हरदम जिसने, तेरा चरित ललाम।


भव सागर सी दुनिया गहरी, पर केवट की नैया ठहरी
सहज भाव से तर जाएंगे, लेकर तेरा नाम।

अलका सिन्हा