जय श्री राम
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व्याकुल ह्रदय है विकल मन तन दग्ध रहा निष्फल है काम
तिमिर घन के अन्तर्मन में रोशनी को भी लिया हो थाम
आस एक विश्वास तुम
धूमिल राह करो आसान
बद्ध करो द्वि हस्तो को नत मस्तक बोलो जय श्री राम..
संशय ग्रस्त हुआ मन मन्दिर
अगणित कंटक अवरुद्ध काम
विचलित मन रक्तिम नेत्र
सर्वजन तुमने किए निष्काम
बाधित राहों का कर अवसान
भेद लक्ष्य करो प्रस्थान
बद्ध करो द्वि हस्तो को नत मस्तक बोलो जय श्री राम..
डॉ नाथू लाल लोटवाड़ा