राम नाम की माला थामी

राम नाम की माला थामी,
रोम-रोम रस,ताल हो गया।
चित्त में चित्र लगे रघुवर के,
जीवन माला-माल हो गया।

मन भाया राम रतन धन थैली,
अब न ओढ़ूँ चादर मैली।
कान पकड़ कर बोले नीरद,
अन्तिम है यह ग़लती पहली ।

रंग बिरंगा भ्रम का पथ है,
दिन दिन करते साल हो गया।

चुम्बक जैसा मोह जगत है,
मस्तक मस्तक अपना मत है।
अजहु समझ ना पावे मानस,
कहाँ वासना, क्या तीरथ है ।

सीढ़ी महल अटारी गुम्बद,
घर आँगन भी हो गये सरहद।
राम नाम के पँख न परखे,
प्राण निखर कर होते गदगद।

मद-मत्सर से मोह न छूटे,
बँधा स्वार्थ का रिश्ता लूटे।
राज महल के चरण पखारें ,
असली बन कर लम्पट झूठे ।

मानव घट से अधिक सुभागा,
पीतल का खड़ताल हो गया ।

स्वांँसा भी जैसे जल खर्ची,
ख़ूब खरीदी हल्दी मिर्ची ।
इच्छाओं के प्रण पूरन को,
जीवन बना दिया बावर्ची ।

जितना बचाया काम न आया,
साथ चली न जोड़ी माया ।
पाला,पल भी पलट गया फिर,
तृष्णा लत ने ही भटकाया ।

तब उसने मुँह फेर लिया जब,
तिनका तोप की नाल हो गया ।

5* प्रभु तो सही सुमति देही,
राम चदरिया सकल सनेही ।
छल बल कपट छाँड़ जो मनवा,
तरही राम डगर सुध लेनी ।

राम चरण रज सरस सनातन,
पुलकित प्रभा,भरत जोगी मन ।
नस-नस रमत राम हैं जाके,
सतत सार्थक उसका जीवन।


राम दीप की किरन सु-होई,
फसल काटे सब अपनी बोई ।
हीरा जनम गवाँ मत मूरख,
झूठ की निस दिन दही बिलोई ।

राम नाम का मंत्र मिला तो,
हृदय अम्बर थाल हो गया ।

गोपाल देव नीरद
7000706510