हूं तो एक मिट्टी का कुल्लड, मैं सोने सा खरा नहीं,
प्रभु राम पे कुछ लिख पाऊँ , मैं इतना भी बडा नहीं ।
राम पे फिर भी छन्द बनाए, बात पे अपनी अडा नहीं,
क्षमा करे मुझको रघुराई, तुम सा चरित्र भी गढा नहीं ।
राम पे कुछ लिखने से पहले, तप असाध्य करना पड़ता ,
मैं ऐसा मूर्ख हूँ देखो तप अल्पांश भी करा नहीं ।
देढ मास मे मानस पाठा, शिव शंकर को भजता भजाता,
राम लेख मैं फिर लिख पाया, अपना छन्द न मुझ को भाया।
मासपारायण नियम सब, हुए है मुझ से भंग,
नमन गणेश सरस्वती, रही है फिर भी संग।
राम नाम की पावन धारा, कविकुल की है प्राण अधारा,
राम चरित्र है गंगा सागर, करता समाधान को उजागर।
शिव का यह आन्नद है, हनुमान का तप,
काकभुसुन्डी का ज्ञान यह, राम नाम तू जप।
राम नाम काशी के जैसा, न मैं उसका कण लवलेशा,
राम चरित्र है मोक्ष का साधन, साधु संत का यह मन भावना।
राम कथा दुःखतारिणी, देती है आन्नद,
राम ही है वो प्रेरणा, जिससे बनते छन्द।
राम को जो आदर्श बनाए, कलियुग कभी न उसको आए,
राम काज मे ध्यान लगाकर, करे सिद्धाजन सुख को उजागर।
राम चरित मानस जो पढता, पाप हमेशा उससे डरता,
पुण्यो को वो गले लगाता, भवसागर से वो तर जाता।
राम के जैसा जीवन जीता, वो सब दुःख कष्टों से रीता,
अक्षय वट सा वृक्ष उगाता, अपने कुल का नाम बढाता।
राम को जानने के लिए, जन्म ही कम है एक,
राम अनुकम्पा के लिए, मानस पढ़ कर देख।
डॉ शार्दुल श्रेष्ठ