भगवान श्री राम (अमृत ध्वनि छन्द )
अमृत से भी दिव्य हैं,मेरे प्रभु श्री राम।
इनके नित गुणगान से,बनते सारे काम।।
बनते सारे काम,राम जी,ज़न हितकारी ।
महाकृपाला ,दीनदयांला, मंगलकारी।।
प्रेमनिष्ठ प्रिय,सज्जन के हिय,राम सत्यकृत।
इनको जानो,परम अलौकिक,अज मधु अमृत।।
अमृत जैसे बोल हैं,अमृतमय मुस्कान।
हाव भाव अति सरल है,स्वयं ब्रह्म भगवान।।
स्वयं ब्रह्म भगवान,नाम है,सारे जग में।
हैं अविनाशी,प्रिय शिव काशी,दामिनि पग में।।
असुर विरोधी,न्यायिक बोधी,शुभमय सब कृत।
अजर अमर हैं,वर धनु धर हैं,प्रभु नित अमृत।।
सबके प्रति संवेदना,सबके प्रति अनुराग ।
निर्मल भाव स्वरूप प्रिय,रामचन्द्र बड़भाग।।
रामचंद्र बड़भाग,हृदय से,गले लगाते ।
सब में उत्तम,पावन कोमल,भाव जगाते।।
शांत तपस्वी,सहज यशस्वी,प्यारे जग के।
राम नाम को,जपते रहना,प्रभु श्री सबके।।
जिसको प्रिय श्री राम हैं,वही भक्त हनुमान।
राम भक्ति में मगन हो,भागे जड़ अभिमान।।
भागे जड़ अभिमान,चेतना,प्रति क्षण जागे।
चले संग में,राम शक्ति ही,आगे आगे।।
हो अभाव सब,नष्ट हमेशा,सब सुख उसको।
हैं रघुनंदन,पावन चंदन,मोहक जिसको।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।