श्रीराम जीवनचरित

श्रीराम जीवनचरित


जन्में दशरथ लाल,नगर में खुशियां छाई।

मुदित हुए सब लोग, द्वार पर बजे बधाई।

खुशी मनाते देव, लगे दुंदुभी बजाने।

तरस रहे हैं इन्द्र,दरस को रघुवर के पाने ।।1।।


आये अवध किशोर,फूल चुनने को उपवन।

सीता आयीं आज ,मात गौरी के पूजन।

देख कुंज की ओट,राम छबि हृदय समायी।

अपलक रहीं निहार,सिया सुधि बुध बिसरायीं ।।2।।


शिव धनु तोड़ा राम,जनकपुर खुशियां छाईं।

गाओ मंगल गान, बने दूल्हा रघुराई।

सीता रहीं निहार ,झलक रघु कंगन आई।

सुध-बुध सीता भूल,राम छबि हृदय समाई।।3।।


सोलह श्रृंगार छोड़, कोप में बैठी रानी।

छोड़ें कर्कश तीर, वेधते दशरथ ज्ञानी।

पड़े भूमि पर भूप, वचन कटु बोले बानी।

भूपति टेरे राम, मीन तड़पें बिन पानी।।4।।


राम चले वनवास, संग में जाती सीता।

पीछे सौमित्र लाल, राम के लघु भ्राता।

लिए कौतुहल नैन, ग्राम की पूछें नारी।

श्याम गौर जो संग, कौन है राजकुमारी।5।।


व्याकुल होते राम, शक्ति जब लक्ष्मण लगती।

महावीर हनुमान, आस उनसे ही जगती।

भानु उदय के पूर्व, पवन ले आये बूटी।

बचे सौमित्र प्राण, पिला दी जीवन घूटी।।6।।


जिसका जैसा भाव, राम को देखें वैसे।

लखे विभीषण मित्र ,शत्रु सम रावण जैसे।

विजया दशमी नाम,मिला वध करके रावण।

अंत सत्य की जीत ,गीत गाते हैं चारण।।7।।


खुशियां चारों ओर ,मोद में माता सारी।

भूली सुध -बुध आज,राम की सब महतारी।

अब तक सभी उदास, दिवस बीते थे रीते।

वापिस आये राम ,विरह के दिन अब बीते।।8।।


राघव चरित महान ,रोज पढ़ते रामायण।

करें राम गुण गान, सभी हों धर्म परायण।

लगा राम में ध्यान, नहीं कल देखा किसने।

होता है उद्धार ,चरण प्रभु पकड़े जिसने।।9।।


स्वरचित मौलिक रचना

पुष्पा सोनी

ग्वालियर