श्रीराम से प्रार्थना
हे दुःख भंजन, हे रघुनन्दन!
करूँ मैं विनती बारम्बार।
उल्टा नाम जपा डाकू ने,
भव सागर से पार किया।
चरण धूलि को देकर अपने,
पाहन का उद्धार किया।
दरशन देदो अब तो मुझको,
ओ जगत के पालनहार।
करूँ मैं विनती बारम्बार।
राज तिलक कर दानव का,
लंका राज दिया उसको।
चरणामृत लेकर केवट ने,
तारा था पुरखों को
तुम तो सबके जगत पिता हो,
हे जग के करतार।
करूँ मैं विनती बारम्बार।
कवि विनय मोहन शर्मा
अलवर राजस्थान।