मर्यादा पुरुषोंत्तम राम जल्दी फिर आना होगा।
धरती मे फिर रावण हो गए, अहंकार मिटाना होगा।…………
न छोटा ना बड़ा यहां पर सब अपनी सीमा भूल गए ।
हर बात में बेटा बाप को शिक्षा देने खड़े हुए।
आ जाओ मेरे रामलला धरती मां रोती है ।
पेड़ पौधे नित्य कट रहे हवा नहीं अब बहती है ।
मर्यादा ……………………………।।
एक राम यहां पर रावण की भरमार पड़ी ।
इतने हाथ उठे राम पर मर्यादा की बात अड़ी।
आके लाज बचा लो रामा सीताए नित्य रोती है।
कभी रावण तो कभी दुर्योधन गंदगी समाज मे बोते है।
मर्यादा …………………………।।
अब मत देर करो राघव विनती करती मैं बारंबार ।
सुषमा कुछ लिख नहीं पाती फिर भी कलम चले सौ बार।
पूर्व पश्चिम युद्ध चल रहा आग बड़ी है भारी।
अहंकार के रावण को मारो तुम धनुर्धारी।
मौलिक रचना
सुषमा पाण्डेय✍️