* कजली भजन *
हरे रामा वनको चले रघुराई सिया सुकुमारी रे हारी।।
हरे रामा नाशत असुरहिँ संतो के भय हारी रे हारी।।
केकई ने वर मांगा सुनके दशरथ हुए अधीरा रामा।
वन में न भेजो मेरे राम को कहते भर भर नीरा रामा।
कि हरे रामा दे दो राज भरत को चाहे सारी रे सारी ।
हरे रामा वनको चले रघुराई सिया सुकमारी रे हारी ।।
सुनके राज भरत भाई को हरषाए रघुराया रामा।
जिहि कारण अवतार लिए हैं आज वो शुभ दिन आया रामा।
कि हरे रामा दे दो राज भरत को चाहे सारी रे सारी।
हरे रामा वनको चले रघुराई सिया सुकमारी रे हारी।।
सुनके राज भरत भाई को हरषाए रघुराया रामा।
सुनके राज भरत भाई को हरषाए रघुराया रामा।
कि हरे रामा धन्य ये अवसर मान भगत हितकारी रे हारी ।
हरे रामा वनको चले रघुराई सिया सुकमारी रे हारी ।।
राम सिया के संग चले हैं वनको लक्ष्मण भैया रामा।
अपने दुलारों को समझाएँ विकल कौशल्या मैया रामा।
कि हरे रामा रोय रहे हैं अवध के सब नर नारी रे हारी।
हरे रामा वनको चले रघुराई सिया सुकमारी रे हारी।।
रचना– दीपिका दुबे (जबलपुर, मध्यप्रदेश)
Deepika Dubey ” Jabalpur
मो. — 8989155716, 8839219848