जन-जनके नायक हुए ,दशरथ नंदन राम ।
समदर्शी व्यवहार से ,किए कोटि सत काम ।।
धन्य-धन्य श्रीराम प्रभु ,धन्य अयोध्या- धाम ।
धन्य धरा बहती जहाँ ,सरयू सरि अविराम ।।
कोटि सूर्य-सा आभ मुख ,कमल नयन तन श्याम ।
लिए मधुर मुस्कान अधर, दशरथ नंदन राम ।।
सागर सा संयम लिए ,करुणा नीति निधान ।
त्याग समर्पण मूर्ति के ,धर्म पराक्रम खान ।।
कण-कण बसते राम हैं ,धर्म सनातन राम ।
सर्वश्रेष्ठ मानव धरा ,मानव रक्षा काम ।।
चाह मिलन की मन लिए ,युद्ध किए श्री राम ।
रण अधर्म पर धर्म का ,विजय हुआ श्री नाम ।।
दुखियों के प्रभु दुख हरे ,चखते शबरी बेर ।
सत्य मार्ग पर नित चले , किए निशाचर ढेर ।।
सत्य वृत्तियाँ राम हैं ,राम एक ही नाम ।
राम शील गुण धर्म से ,बना अयोध्या- धाम ।।
राम-राम सत्कार है ,राम-राम दुख बोध ।
राम-राम जीवंत पल , राम-राम भव शोध ।।
चाह रखो यदि जीत की ,लड़ो नित्य ही युद्ध ।
रौंद अहित जीवन सदा ,विजय वरण कर शुद्ध ।।
विजया दशमी पर्व है ,अमर विजय का कथ्य ।
संयम बल पुरुषार्थ से , राम प्रशस्त सुपथ्य ।।
डा. सुनीता सिंह ‘सुधा’
वाराणसी