रामायण का सार है,त्याग और अनुराग।
युगों-युगों तक नहीं लगे,आदर्शों पर दाग।।
राम लला से सीखिये,त्याग और अनुराग।
वचन निभाने के लिए,दिया महल को त्याग।।
आप बताएं राम सा,कैसे गढ़े चरित्र।
ना ही गुरु वशिष्ठ हैं,और न विश्वामित्र।।
माँ शबरी को देखकर, भावुक दीनानाथ।
जूठे बेरन खा गए,बड़े जतन के साथ।।
कुटिल मंथरा ने यहाँ, फेका ऐसा जाल।
मात कैकई के लिए,बना विकट जंजाल।।
माँ सीता से सीखिये,साथ निभाना आप।
विषम काल में साथ दे,करे कभी न विलाप।।
सोच समझकर दीजिये,दशरथ जी वरदान।
वरना तो हो जाएगा,बहुत बड़ा नुकसान।।
सुख-दुख अपने त्यागकर, लक्ष्मण बने महान।
बुरे वक्त में राम के,बने रहे हनुमान।।
हनुमन भक्ति देखकर,भक्त बने भगवान।
ऐसी भक्ति देखकर,खुद भी हैं हैरान।।
राम नाम के जाप से,कटे विकट जंजाल।
फिर कैसा भी वक़्त हो,देता सब कुछ टाल।।
मनोज कामदेव
दोहाकार
ग़ाज़ियाबाद, यू.पी.
9818750159