मैं हूं लक्ष्मण आपको अपने दिल की बात बताता हूं

मैं हूं लक्ष्मण आपको अपने दिल की बात बताता हूं,

सदियों से मैं राम सिया की व्यथा कथा सुनाता हूं।

बहुत ही प्यारे राम भाई और हैं प्रिय सीता माता

मैं तो हरदम उन दोनों के पैरों शीश नवाता हूं।

सदियों से मैं राम सिया की व्यथा कथा सुनाता हूं ।

प्रिय भाई श्रीराम थे लेकिन, फर्ज नहीं निभा पाया,

वन जाने के उस संकट को, काहे नहीं मिटा पाया।

समझा पाया न मंथरा, कैकई को न ही उनसे लड़ पाया,

मैं ही कारण वन संकट का, भूल कभी मैं नहीं पाया।

पैरों नीचे कांटे लेकर, आज तलक हूं व्यथित बहुत,

बहुत कष्ट है राजा राम को ,राजा नहीं बनवा पाया।

मुझको लगता मैं ही दोषी हूँ राम सिया के कष्टों का,

वन में छोड़ मां सीता को, आज ही वापस आया हूं।

वन में उनके साथ रहा तो मेरा जीवन सफल हुआ

पर मैं उनके जीवन में कुछ खास नहीं कर पाया हूं।

यही व्यथा है मेरे मन में, सदा ही मुझको खाती है,

दोनों बार ही सीता मां को मैं ही दुख पहुंचाया हूं।

मुझको लगता मैं ही दोषी सिया राम के कष्टों का,

अपने होने का सही फ़र्ज़ भी निभा नहीं मैं पाया हूं।

जिनके जीवन राम रहेंगे ,उनका जीवन धन्य धन्य,

बिना राम सिया के जग ने बोलो तो क्या पाया है।