राम रस

राम भरत लखन शत्रुध्न।
दशरथ के हैं जाए लाल ||
औधड़- तड़का मारन राम |
अहिल्या – शिला तारण राम।।

सीता विवाह करन को गए।
शिव-धनु तोड़, परषु-क्रोधित भए ।।
चारों भ्रात लेआए रानियाँ।
शुभ लगन की पावन घड़ियाँ ||

सीत लखन संग चले सो वन को ।
चौदह बरस कहे दो पल को ।।
केवट परम भगत जग देखा।
प्रभु की नाव भगत करे टेका।।

वन-वन भटके श्री-नारायण।
दुख हारी के दुख नहीं हारन ॥
स्वर्ण हरिन छल- हर कही रावण
भ्रात – दोऊ के दुख को कारण ॥

हनुमत अंगद अंगद कवि -सुग्रीवा ।
राम संग चले लंका जीता ||
रावन दलन करे जगदीशा ।
विभीषण अब लंका धीशा ।।

सौप मैथली प्रगटी अगनी |
कमल नयन चले कौसल नगरी ।।
भरत मात संग प्रजा को |
प्रभु दिये धीर – प्रनाम ॥

राम नाम का रोग लगे ।
लगे न कोऊ रोग।।
जे लगे राम रोग तब |
मानव तरे कुल – लोक॥

– मान्त्रिका ओमर