मैंने राम को देखा है

कौन हैं राम कैसे थे राम,
कब थे राम कहाँ है राम?
अक्सर ऐसे प्रश्न उठाते,
लोगों को मैंने देखा है।
श्रद्धा-सूर्य पर संशय-बादल,
मंडराते मैंने देखा है।
है उनको बस इतना बतलाना,
मैंने राम को देखा है।

पितृ वचन कहीं टूट ना जाये,
सौतेली माँ भी रूठ ना जाये।
राजसिंहासन को ठुकराकर,
परिजनों को भी बहलाकर।
एक क्षण में वैभव सारा छोड़,
रिश्ते नातों के बंधन तोड़।
कुल-देश-धर्म की मर्यादा पर,
सर्वस्व लुटाते देखा है।
हाँ मैंने त्याग में राम को देखा है।
मैंने राम को देखा है।


केवट को बाहों में भर लेना,
मित्रवत रीछ वानर की सेना।
शबरी के जूठे बेरों का प्यार,
गिद्धराज से पितृसम व्यवहार।
गिलहरी की पीठ हाथ फिराना,
समरसता का सुन्दर पाठ पढ़ाना।
निज आचरण का बना उदाहरण,
हर भेद मिटाते देखा है।
हाँ मैंने न्याय में राम को देखा है।
मैंने राम को देखा है।


श्री विष्णुरूप हैं मेरे रघुनंदन,
जो करें नित महादेव का वंदन।
विद्वानों के समक्ष शीश झुकाना,
रात्रि भर गुरु के चरण दबाना।
धनुष हाथ ले पहरा देना,
घर घर जाकर भिक्षा लेना।
तीनों लोकों के स्वामी होकर,
सेवा करते भी देखा है।
हाँ मैंने विनम्रता में राम को देखा है।
मैंने राम को देखा है।


यज्ञ भंग करते दैत्य विराट,
रामबाण ने दिये मस्तक काट।
प्रचंड शिव धनुष का तोड़ना,
जनक नंदिनी से नाता जोड़ना।
पापी रावण को दे उचित दंड,
की विभीषण पर कृपा अखंड।
शक्ति के समुचित सद उपयोग,
का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन देखा है।
हाँ मैंने पराक्रम में राम को देखा है।
मैंने राम को देखा है।

विश्वामित्र का आना दशरथ द्वार,
माँ अहिल्या का होते उद्धार।
भरत लक्ष्मण का सर्वस्व अर्पण,
बजरंग बली का सम्पूर्ण समर्पण।
अंगद की अतुलित शक्ति,
विभीषण की अन्नय भक्ति।
रामेश्वरम के पावन तट पर,
पत्थरों को तैरते देखा है।
हाँ मैंने विश्वास में राम को देखा है।
मैंने राम को देखा है।

पुत्र बन पिता का वचन निभाया,
पत्नी का सम्मान बचाया।
शरणागत रक्षा का करके ध्यान,
क्षत्रिय धर्म का रख लिया मान।
प्रजा हित को रख सबसे आगे,
तोड़ दिए निज नेह के धागे।
धर्मयज्ञ में समिधा बनकर,
निज जीवन अर्पण करते देखा है।
हाँ मैंने धर्मपरायणता में राम को देखा है।
मैंने राम को देखा है।

राम ही साकार है,
और निराकार भी राम हैं।
राम में सारे गुण भरे,
हर सद्गुण में दिखते राम हैं।
राम हैं हर मंदिर में,
मनमंदिर में शोभित राम हैं।
राम से ही सृष्टि सारी,
हर कण में समाये राम हैं।

राम पिता का पावन पुरुषार्थ,
राम ही माँ की निश्छल ममता।
राम सखा के स्नेहालिंगन में,
गुरु कृपा में राम ही दिखता।
वीरों के शौर्य में राम हैं,
राम बसे हर ज्ञानी में।
परमार्थ का हर कार्य राम का,
मुझे दिखे राम हर दानी में।

जीवन पथ हो जाये दुष्कर,
तो अपने सहचर राम हैं।
जितने प्रश्न भरे हैं अंदर,
सबका उत्तर राम हैं।
राम पर यदि ध्यान दिया,
हर संशय तब मिट जायेगा।
राम के गुण जो भी अपना ले,
वही राम हो जायेगा।

राम की इस दुनिया में,
राम रूप को देखा है।
मैंने राम को देखा है।
मैंने राम को देखा है।

श्रद्धा सहित – विवेक अग्रवाल

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