मैंने क्या अपराध किए हे प्रभू
जो मुझको ये परित्याग मिला
क्यों मुझे शरण में लिया नहीं
क्यों मुझको यह वैराग मिला
मैंने प्रीत की रीत निभाई सदा
तन मन सब तुमको सौंप दिया
मैंने कौन से ऐसे कर्म किए
मेरे मर्म को ये हतभाग मिला
मैंने क्या अपराध किए हैं प्रभू
कर्तव्य परायण बनकरके ,
सारे आदेशों को माना
अंतर्मन की इच्छाओं का ,
हां मोल कभी ना पहचाना
अंधियारे सारे मिटा सके, ना ऐसा कोई चिराग मिला
मैंने क्या अपराध किए हे प्रभू
मैंने सही उपेक्षा अपनों की
जीवन में विकट परीक्षा दी
वर्षों तक यही प्रतीक्षा की ,
पर मुझको ना अनुराग मिला।
मैंने क्या अपराध किए हे प्रभू
है यही कामना जीवन की
हर जन्म में साथ तेरा पाऊं
अपने सारे सत्कर्मों का
प्रतिफल तुमको ही दे जाऊं
दुर्भाग्य है मेरे जीवन का
मुझको न तुम्हारा राग मिला
मैंने क्या अपराध किए हे प्रभू
जो मुझको ये परित्याग मिला
क्यों मुझे शरण में लिया नहीं
क्यों मुझको यह वैराग मिला
गार्गी कौशिक