अगर कुदरत न चाहे तो,समन्दर घट नही सकता
सत्य को काटना चाहो,मगर वो कट नही सकता
ज्ञान की बह रही सरयू ,बुझाती प्यास जन जन की
अयोध्या में कभी बन्धुत्व,दिल से हट नही सकता ।।
जहाँ कण कण में अमृत हो,वहाँ पारा नही होगा
अयोध्या धाम का पानी,कभी खारा नही होगा
ये धरती आस्था की है,प्रेम की बह रही सरिता
प्रभू श्रीराम के जैसा,सृजनहारा नही होगा ।।
गूंजती है फिजाओं में,ऋषि मुनियों की बानी है
आचमन देवता करते,सरयू माँ का पानी है
बरसती है यहाँ करुणा, हवा भी प्रेम की बहती
यही सच है अयोध्या ही,धर्म की राजधानी है ।।
सबसे पहले दूषित मन में,राग द्वेष का दमन करूंगा
अमृत जैसा सरयू जल से,अँजुरी भर आचमन करूंगा
तिलक लगाकर इस माटी से,महका लूंगा अन्तरमन भी
नतमस्तक होकर चरणों में,जन्म भूमि का नमन करूंगा ।।
अपनी जो अयोध्या है ये खिलता गुलाब है
माँ भारती की शान है दुनिया का ख्वाब है
बेदार की है नज्म तो सागर की रवानी
आभा तो निराली है महक लाजबाब है ।।
चन्द्रगत भारती
74, अश्वनीपुरम अयोध्या(यूपी