श्री राम गीत

श्री राम गीत

मैं पलकन डगर बुहारूंगी ।
अंसुवन से चरण पखारूंगी।।
आवेंगे जब मम राम लला ।
तन-मन-हृद उन पर वारूंगी ।।


पथ – वीथी – भवन सजाऊंगी ।
अर गंधित गाछ लगाऊंगी ।।
पग – पग पर दीप जलाकर के ।
हिय का मम पथिक बुलाऊंगी ।
जब आवेंगे ढिग हिय – पंथी ।
हर्षित हो सतत निहारूंगी ।।
आवेंगे जब मम राम लला..

 

लो आये ठुमुक, दिलिप-नंदन ।
पद-पैंजन बजत छनन-छन- छन ।।
हथ-कंगन की आभा अतुलित ।।
करधनिया छेड़े मधुरिम धुन ।
आंचल से श्रमकण पोंछ के अब।
श्री मुख की अलक संवारूंगी ।।
आवेंगे जब मम राम लला..


सीते आराधन मत खोना।
मिट्टी है उनके बिन सोना ।।
वे अतुलित हैं उनके आगे ।
हर भीमकाय लगता बौना ।।
मम – जीवन का निष्कर्ष यही ।
बस राम हि राम गुहारूंगी ।।
आवेंगे जब मम राम लला..


अन्तर के नयन निहारा है ।
वो रघुकुल-मणिक सितारा है।।
थे जिन पर दशरथ उत्सर्गित ।
कौशल्या-तनय पियारा है ।।
वह ओज-नयन ना झेलें पर ।
हतप्रभ सी, ठहर निहारूंगी ।।
आवेंगे जब मम राम लला..

हे नाथ ! कृपा इतनी कीजे

तव दर्शन से अन्तर भीजे ।।
रौआं – रौआं तव अभिलाषी ।
ये वचन, सुनत , रघुवर रीझे ।।
बोले रूही तू जीत गई ।
मैं, बोली खुद को हारूंगी ।।
आवेंगे जब मम राम लला..
-ऋतु अस्थाना ‘रूही’ फ़रीदाबादी