कुम्भकर्ण लंका से अब

कुम्भकर्ण लंका से अब,
रण मे जाता है यह देखो।
डगमग डगमग पर्वत डोले,
कि धरा मे कम्पन है देखो,,
भगदड़ मचती है सेना मे,
अद्भुत यह महासमर देखो,,

हरि से मैत्री निभाने को,
निज भाई को समझने को,
भीषण विध्वंस बचाने को
मेत्र्ति का सनदेशा लाया,
भाई के सम्मुख है आया,,

दो बन्धु मिले, दो सखा मिले,
दो भ्राता मिलते है देखो,,
संवाद हुआ क्या दोनों मे,
इतिहास के पन्नो से देखो,,

कर जोड़ करे है अभिनन्दन,
भ्राता के चरणों वन्दन,,
अपना निज धर्म निभाता है,
भ्राता के सम्मुख भ्राता है

हाथो मे विभीषण ठाड़ा है,
और कुम्भकर्ण संवाद करे,
किस कारण शत्रु प्यारा है,
क्यों कूल देश सब त्यागे,,
राजा ने हम को त्यागा है,
इस में क्या दोष हमारा है,

भाई भाई की है शक्ति ,
भाई भाई कीअभिव्यक्ति ,
आपत्ति काल में त्याग दिया,
क्या तुम को लाज नहीं आती,

जिन की तुम भक्ति करते हो,
उन से ही कुछ शिक्षा लेते,
आदर्श राम और लक्षमण का,
जीवन मे तुम अपना लेते,,

किन्तु राम नारायण है,
तो रण मे मृत्यु निश्चित है,
तब भी है धर्म यही कहता,
कूल देश धर्म पर मरना है,,

अब जाओ विभीषण वापस तुम,
तुम भी है अपना कर्म करो,
में भी हूँ अपना कर्म करू,,

किन्तु ये निवेदन है बन्धु,
रण मे जीवन या मरण होगा,
न जाने कोई कल क्या होगा,,
यदि हुई पराजय अपनी तो ,
तुम ही जीवित बच पाओगे,
तब अपना धर्म निभाना तुम,
हम सब का करना तर्पण तुम,,


रणचण्डी का आवाहन कर ,
वह काल की भाती चला देखो,
कुंद सभी के अस्त्र भये है,
और महाभट है हारे,,
रण मे तब लक्ष्मन हुंकारे,,

श्री राम के छोटे भाई से ,।
रावण का छोटा भाई लड़े,,
यह दृश्य निराला देखने को ,
अम्बर देवता आन खड़े,,

इत लखन धर्म के साथ खड़े,
उत रावण की है आस लड़े,,
अपने अपने प्रण की खातिर,
दोनों प्रतिपल संग्राम करे,,

शिव की महाशक्ति दी है चला,
इस वार को हनुमत ने रोका,,
सुग्रीव गदा का वार करे,
महादानव पर प्रहार करे,,

टस से मस नहीं होए है दानव,
वानर का उपहास करे,,
हाथो मे पकड़ कर चला असुर,
सुग्रीव को लेके कर है लंका,,
अब रण में आए रघुनन्दन ,
हर बाधा का प्रतिकार करे,,

श्री राम को नमन किया पहले ,
फ़िर रण की है हुंकार भरी,,
हरि पे विजय नहीं होनी है,
ये माना मृत्यु होनी है ,,

देश भ्राता कुल की ख़ातिर,
रण मे है अब रणवीर लड़े,,
शस्त्रो को काटे शस्त्रो से ,
है बरछी भाले खूब चले,,

दोनो ही रण मे है माहिर
अपना कौशल दिखलाते है,
इस महासमर को देख देख
सुर जन मुनि भी थराते है,

है असुर वार पर वार करे,
महाअस्त्रो का संधान करे,,
हर वार को काट रहे रघुवर,
अद्भुत यह नर लीला देखो,,

हरि जब तक चाहे खेल करे,
जब चाहे तब संघार करे,,
सर कही गिरा धड़ कही गिरा,
और कही गिरी है भुजा देखो,,

भाई के कर्मो के कारण,
रण में है भाई मिटा देखो,,
यह धर्म मनुज को सिखलाती ,
रामायण की दीक्षा देखो,,,

गोपाल गुप्ता”गोपाल”