सुंदरकांड के प्रथम तीन श्लोक को मत्तगयंद सवैया में ढालने का प्रयास।
-1-
आप अमाप, अनंत,सनातन,शान्त करें मन मोक्ष प्रदाता।
सेवित हैं विधि,शेष, महेश्वर,वेद विधान जिन्हें पढ़ पाता।
हैं परमेश्वर, हैं सुर के गुरु, मानव रूप महान विधाता।
हे!करुणाकर,हे! जगदीश्वर, वंदन मैं कर शीश नवाता।।
-2-
कथ्य कहूँ सब सत्य सियावर,अन्य अभीष्ट नहीं मन मेरे।
भक्ति वरो निज सेवक को प्रभु,काम विकार नहीं मन घेरे।
वास करें हर अंतस श्रीपति, कौन सिवा शुभचिन्तक तेरे।
शक्ति प्रदान करो इतना विभु,राम सकूँ भज साँझ-सबेरे।।
-3-
आलय ओज असीम मनोहर, स्कंध सुमेरु समान विधाता।
दानव-कानन हेतु हुताशन, और प्रसिद्ध महा जग ज्ञाता।
जो गुण के निधि वानर वल्लभ,राघव से जिनका प्रिय नाता।
मैं बजरंगबली चरणों निज, लेट धरा पर शीश नवाता।।
अभय कुमार “आनंद”
विष्णुपुर, पकरिया,बाँका,बिहार व
लखनऊ,उत्तरप्रदेश