कितने प्रश्न उठाओगे तुम, बोलो मेरे राम पर
बिन मुझको जाने पहचाने, पहुँच गए परिणाम पर
चला रहे हो, बिन जाने ही
कटु प्रश्नों की आरी को
लेकर वन में साथ गए क्यों
मुझ कोमल सुकुमारी को
चौदह बरस राम वन जाये
माँगा था वर माता ने
मगर किया था आग्रह मैने
वही शेष अनु-भ्राता ने
विनय और अनुनय इच्छाओं
को रघुवर ने मान दिया
कदम कदम पर रघुनंदन ने
स्त्री को सम्मान दिया
एक यज्ञ, यज्ञों की रक्षा
असुर मुक्त भू-धाम रहे
कैसे होता पूर्ण बताओ
वामा ही नहीं वाम रहे
तार अहिल्या, झूठे फल खाये शबरी के धाम पर
कितने …. ….. …… …….. …… ….. ……. …. …
छल से बाली मार दिया क्यों
क्या वीरोचित काम कहो
क्षत्रियकुल की मर्यादा पर
एक लांछन लगा अहो!
अनुज-भार्या सुता तुल्य है
था उसको क्या ज्ञात नहीं
कभी न मरता राम बाण से
रखता छीन बलात नहीं
छल से छल का अंत नहीं छल
किन्तु न छल से मारा था
वृक्ष ढाल कर श्री राम ने
रण-कौशल से मारा था
नीति-रीति का पाठ उसे तब
अंत समय समझाया था
किष्किंधा भूभाग राज्य का
न्यायिक धर्म निभाया था
इंद्र-पुत्र ने दोष मढ़ा कब, न्यायधीश निष्काम पर
कितने …. ….. …… …….. …… ….. ……. …. …
तात अग्नि के पास रही मैं
हरण हुई प्रतिछाया थी
महाअसुर की मृत्यु हेतु ही
रची गयी यह माया थी
अजर अमर अविनाश भूमिजा
पंचतत्व संरक्षक हैं
अग्निपरीक्षाएँ तब कैसे
बोलो किस विधि विषयक हैं
निराधार यह अग्नि-परीक्षा
अगिन-परीक्षाएँ भारी
त्रेता से कलयुग आ बैठा
समझ न पाते नर-नारी
रमा राम बिन, राम रमा बिन
कब पूरे हो पाते हैं
अविवेकी हैं अज्ञानी हैं
जो ये प्रश्न उठाते हैं
दुर्मति हैं काजल से काजल लिख पूछें पट-श्याम पर
कितने …. ….. …… …….. …… ….. ……. …. .
भूपेन्द्र राघव
9810742192