
जो आँखों में अभिलाषा थी, उसको पंख मिलेंगे अब।
मंदिर राम विराजित होंगें,मन के पुष्प खिलेंगे अब।
वसुधा स्वागत को तत्पर है,ईंट नींव को पाने को।
बाँध पैजनियाँ नर्तन करके, प्रभु को खूब रिझाने को।
अन्तस तक है लहर खुशी की,मंगल गायन करने को।
अपने आँचल में प्रभु भक्ति, पूर्ण रूप से भरने को।
जन-जन के चरणों की रज ही,उसका रोली चंदन है।
दीपक थाली लिए सुशोभित, मर्यादा का वंदन है।
पुण्य धरा का स्वागत करने,इंद्रदेव बरसेंगे अब।
लाख करोडों उम्मीदों का,ये स्थल अभिनन्दित है।
अनुयायियों की रक्त बूँद से ,पूजन स्थल वन्दित है।
मुक्ति पंथ के आराधन में,स्वप्न सँजोये चले गये।
वर्ण शंकरो की सन्तति से,कितने केवट छले गए।
जीवन कितने दफन हो गये, लिखने मुक्ति कहानी में
उनकी स्मृति शेष अभी है,सरयू तट के पानी में।
कारसेवकों की अभिलाषा,प्रभु जी तृप्त करेंगे अब।
सरयू तट पर बसी अयोध्या,है प्रभु की अगवानी में।
मनोभाव का मंगल होगा,श्रद्धा की राजधानी में।
चार धाम अरु सप्तपुरी की,मिट्टी होगी ज्ञान की।
उस मिट्टी में आस्था होगी,पूरे हिंदुस्थान की।
अंजनि पुत्र के सत्कर्मों की,मिली आज सौगात है।
घर में वन्दनवार सजाएँ,दीपों की जगमग रात है।
उस मंदिर के शिखर शिखर पर,भगवा ध्वज फहरेंगे अब।
डॉ राजीव कुमार पाण्डेय
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