इस कलियुग में रामचरित

गीत

इस कलियुग में रामचरित मानस वरदाई है
तुलसी का ये महाकाव्य चिन्तन सुखदाई है

प्राण जाएं पर वचन न जाए रघुकुल ये सिखलाए
परपीड़ा को अपनी मानों मर्यादा सिखलाए
सच्चाई की राह चले अपने रघुराई हैं
तुलसी का ये महाकाव्य…….

प्रीत प्यार के भाव लिए है आदर्शों का दर्पण
भाई का है त्याग और सीता का प्रेम समर्पण
वैभव सुख का त्याग करे लक्ष्मण वो भाई है
तुलसी का ये महाकाव्य…….

अवतारी श्री राम स्वयं जन जन में पूजे जाते
लंका विजय हेतु शिव के चरणों में शीश झुकाते
मीत विभीषण से प्रभु ने क्या प्रीत निभाई है
तुलसी का ये महाकाव्य…….

सहज,सरल,नैसर्गिक जीवन का ये पाठ सिखाता
एक बार सुनते ही मन में शान्ति सुधा बरसाता
इसने जीवन में हर पल इक राह दिखाई है
तुलसी का ये महाकाव्य……
डा.गोविन्द नारायण शांडिल्य
कानपुर
(स्वरचित गीत)