राम वन गमन

चौपाई

राम नाम होता सुखदायक,
जीवन में बन रहा सहायक।
जान वचन माता का अब वो,
किया गमन फिर वन में जब वो ।।

चले वचन वो पूरा करने,
दुखियों की सब पीड़ा हरने।
जिस कारण अवतार लिया था,
काम वही अब पूर्ण किया था।।

सिया लखन भी संग चले है,
सकल अयोध्या विकल भले है ।
रघुकुल नंदन दशरथ प्यारे,
राम-राम बस सभी पुकारे ।।

सब की आँखों के जो तारे,
विधना खेल दिखाती न्यारे।
राम रहे मन में मुस्काए ,
काल-चक्र को शीश नवाए ।।

कौन जानता प्रभु की लीला,
तारण हारे राह कँटीला ।
मंद-मंद मुस्काते चलते ,
पीर सभी की पल में हरते ।।

केवट जाना प्रभु की माया ,
लोटे में झट जल भर लाया।
बोला पहले चरण पखारूँ,
नैया से तब पार उतारूँ ।।

शिला गई बन कैसे नारी,
जादूगर हो या अवतारी ।
यही जीविका यही सहारा,
करती मेरा यही गुजारा ।।

देख रहे प्रभु मन मुस्काए,
धीरे से पग रहे बढ़ाए ।
बार-बार पग केवट धोता,
भावुक हो अंतस सुख बोता ।।

जो जग को है पार लगाता,
केवट पार उसे उतराता।
उतराई में क्या दे भाई ,
सोच रहे मन में रघुराई ।।

मुँदरी दी उतार कर सीता,
भाव भरा मन रहा न रीता ।
खड़ा जोड़ कर केवट कर दो,
बोला हृदय भक्ति से भर दो।।

निशाअतुल्य