सब जन सुख दाता,चारों भ्राता,आँगन खेल सुहाए।
आश्रम व्रत धारा,कठिन आचारा,विद्या पा घर आए।।
गुरु मख रखवारे, ताड़क मारे,ऋषि पत्नी उद्धारी।
शिव धनु तोड़ा, नाता जोड़ा, वरी सिया
शुभकारी।।
पितु वचन निभाए,वनहि सिधाए,लंक जीत घर आए।
शोभित सिंहासन,सिय वामासन,राजतिलक मन भाए।।
नभ आये देवा,करते सेवा,मुदित पुष्प बरसाए।
ब्रह्मा त्रिपुरारी, हुए सुखारी,नारद स्तुतियाँ गाए।।
गुरु मात निहारे,मुक्ता वारे,सेवा में सब भाई।
हनुमत से पायक,सब विधि लायक,छवि अनुपम सुख दाई।।
पुष्पाशर्मा’कुसुम’
94144 17456